सिद्धारमैया ने इस्तीफा देने से किया इनकार; क्या है मुडा घोटाला? जिसके चलते कर्नाटक के सीएम के खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा


बेंगलुरु:

कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत ने कथित MUDA घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है. इसके बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के इस्तीफे को लेकर सवाल उठने लगे. हालांकि, उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार से लेकर सभी वरिष्ठ मंत्रियों ने विशेष कैबिनेट बैठक से पहले आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट कर दिया कि वे मुख्यमंत्री के साथ खड़े हैं और सिद्धारमैया इस्तीफा नहीं देंगे। सिद्धारमैया ने भी इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है.

राज्यपाल के इस फैसले पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कैबिनेट की विशेष बैठक बुलाई, जिसमें कैबिनेट ने उनका समर्थन किया और राज्यपाल के फैसले की निंदा की. बैठक के बाद सिद्धारमैया ने साफ कर दिया कि वह इस्तीफा नहीं देंगे. उन्होंने कहा, “मुझे इस्तीफा क्यों देना चाहिए, मैंने क्या अपराध किया है। इस्तीफा राज्यपाल को दिया जाना चाहिए, जो केंद्र सरकार के हाथों की कठपुतली हैं।”

मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ मुक़दमे की इजाज़त देने के बाद मैसूर समेत राज्य में कई जगहों पर राज्यपाल के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘मैं देश का वरिष्ठ ओबीसी मुख्यमंत्री हूं, इसलिए बीजेपी मुझे निशाना बना रही है.’

मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल की अनुमति आवश्यक है

राज्यपाल थावरचंद गहलोत के कार्यालय द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया, “भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत सिद्धारमैया के खिलाफ मामला दर्ज करने की अनुमति दी गई है।”

यह आवेदन आरटीआई कार्यकर्ता टीजे अब्राहम ने राज्यपाल को सौंपा था. बाद में सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए बेंगलुरु की पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव कोर्ट में भी अर्जी दाखिल की गई. मामला मैसूर के लोकायुक्त कार्यालय में भी दर्ज किया गया था, लेकिन अदालत के आदेश के अनुसार, राज्यपाल की अनुमति के बिना मुख्यमंत्री के खिलाफ मामला नहीं चलाया जा सकता है।

मुख्यमंत्री के कानूनी सलाहकार ए.एस. पोन्ना का राज्यपाल से सवाल है कि, ”सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक लोकायुक्त पुलिस ने एसआईटी गठित की, जांच की और मंत्री रहे मुर्गेश निरानी, ​​जनार्दन रेड्डी और शशिकला जोले के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति ली. भाजपा सरकार में लोकायुक्त पुलिस ने राज्यपाल से पूछा, लेकिन अब तक उन्होंने अनुमति नहीं दी, क्यों? उन्होंने यह भी कहा, ‘राज्यपाल ने एनडीए सहयोगी जेडीएस नेता और मौजूदा केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी के खिलाफ भी अनुमति नहीं दी है.’

MUDA मुद्दा क्या है? इस पर इस तरीके से विचार करें

MUDA यानी मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण ने 1992 में मैसूर के देवनूर में एक लेआउट विकसित करने के लिए एक प्लॉट लिया। 1998 में अधिग्रहीत भूखंडों का एक हिस्सा डीनोटिफाइड कर दिया गया और MUDA द्वारा उनके मालिकों को वापस कर दिया गया। साथ ही कहा कि उन्हें इस टुकड़े की जरूरत नहीं है. इस टुकड़े को एक बार फिर से डिनोटिफाइड कर कृषि भूमि घोषित कर दिया गया। 2004 में इस ज़मीन के 3 एकड़ 16 गुंठा टुकड़े को सिद्धारमैया की पत्नी के भाई ने खरीदा था। यह कृषि योग्य भूमि थी. ऐसे में इसे एक बार फिर डिनोटिफाई कर कृषि भूमि की श्रेणी से बाहर कर दिया गया. यह टुकड़ा सिद्धारमैया के भाई ने उनकी पत्नी को उपहार में दे दिया था। जब कब्ज़ा लेने का समय आया तो पता चला कि वहां मुडा ने एक लेआउट बना दिया है. ऐसे में MUDA के खिलाफ कागजी कार्रवाई शुरू हो गई है. इस बीच, 2010 में, MUDA ने 50/50 योजना शुरू की। यानी मुडा द्वारा अधिग्रहीत जमीन के बदले में आधी जमीन विकसित प्लॉट मालिकों को दी जायेगी. इस योजना पर 2020 में येदियुरप्पा सरकार ने रोक लगा दी थी, लेकिन इसके बावजूद बीजेपी की बसवराज बोमई सरकार ने 2022-23 में सिद्धारमैया की पत्नी को 14 प्लॉट जारी कर दिए, वो भी विजयनगर जैसे महंगे इलाके में.

बीजेपी पर 4000 करोड़ के घोटाले का आरोप है

अब बीजेपी का आरोप है कि यह करीब 4000 करोड़ रुपये का घोटाला है. बीजेपी का आरोप है कि 1998 से 2023 तक सिद्धारमैया उप मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और फिर मुख्यमंत्री के पद पर रहे, हालांकि उन्होंने किसी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर नहीं किए, लेकिन अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया. वहीं सिद्धारमैया का कहना है कि मुख्यमंत्री होने के नाते फाइल उनके पास भी आई थी लेकिन उन्होंने इस पर कार्रवाई नहीं की. उन्होंने कहा कि अगर कुछ गलत था तो बीजेपी सरकार ने उनकी पत्नी को प्लॉट क्यों दिये. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि वह ओबीसी हैं, इसलिए बीजेपी उनके खिलाफ है.


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