नीतीश कुमार इन दिनों काफी एक्टिव हैं. राष्ट्रीय राजनीति से लेकर राज्य की राजनीति तक को वह अपने अंदाज में चला रहे हैं. नीतीश कुमार गुपचुप तरीके से मिशन मोड में हैं. वे जाति जनगणना को लेकर जहां विपक्ष के साथ समन्वय कर रहे हैं, वहीं अपनी ताकत भी बढ़ा रहे हैं. इसका मतलब यह है कि सरकार के साथ-साथ नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी जेडीयू को भी सक्रिय कर दिया है. नीतीश कुमार ने कुर्मी-कुशवाहा समीकरण के साथ लालू यादव के मुस्लिम-यादव समीकरण को तोड़ दिया. इसके साथ ही इसमें अति पिछड़ी और अति दलित जातियों को जोड़ा गया और इसके जरिए वे करीब 20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं. यह नीतीश कुमार का शक्ति संतुलन ही है कि वह कभी बीजेपी के साथ सरकार बनाते हैं तो कभी अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी लालू यादव की पार्टी राजद के साथ. बड़ी बात ये है कि गठबंधन में चाहे कोई भी पार्टी हो, मुख्यमंत्री हमेशा नीतीश कुमार ही रहे हैं.
यही कारण है कि यह सक्रिय है

इसके बावजूद 2020 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार को हमेशा सताता रहता है. क्योंकि उन्हें सिर्फ 43 सीटें ही मिलीं. बीजेपी को 74 सीटें और हम और वीआईपी गठबंधन को 4-4 सीटें मिलेंगी. महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल को 75, कांग्रेस को 19, सीपीआई (एमएल) को 12 और सीपीआई-सीपीएम को 2-2 सीटें मिलीं। नीतीश कुमार की पार्टी का दावा है कि उस विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने सारा खेल बिगाड़ दिया था. इस चुनाव के बाद भले ही बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन नीतीश कुमार इससे खुश नहीं थे. अब 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए नीतीश कुमार कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं.
कुशवाह वोट बैंक साढ़ा
ऐसे में नीतीश कुमार अपनी पार्टी का समर्थन बढ़ाने में लगे हुए हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में उनके कुशवाहा-कुरमी वोट बैंक में थोड़ी गिरावट आई थी. उपेन्द्र कुशवाहा फिलहाल एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन नीतीश कुमार सिर्फ सहयोगी दलों पर निर्भर नहीं रहना चाहते. यही वजह है कि कल भारतीय स्वराज मोर्चा का जेडीयू में विलय हो गया. भारतीय स्वराज मोर्चा के अध्यक्ष रवि उज्जवल कुशवाहा जब अपने साथियों के साथ जेडीयू में शामिल हुए तो उन्होंने नीतीश कुमार की जमकर तारीफ की. भारतीय स्वराज मोर्चा का राजनीतिक प्रभाव भले ही ज्यादा न हो, लेकिन इसने कुशवाहा मतदाताओं को यह संदेश जरूर दिया है कि नीतीश कुमार ही कुशवाहा समाज के सर्वमान्य नेता हैं.
क्या शामिल होंगे श्याम रजक?
इसी तरह लालू यादव के दाहिने हाथ माने जाने वाले श्याम रजक के भी जेडीयू में शामिल होने की अफवाह है. श्याम रजक पहली बार 2009 में नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल हुए थे. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वह दोबारा लालू यादव की पार्टी राजद में शामिल हो गए। अब कुछ दिन पहले उन्होंने एक लंबी चिट्ठी लिखकर राष्ट्रीय जनता दल से इस्तीफा दे दिया है.

माना जा रहा है कि श्याम रजक के इस्तीफे से पहले ही नीतीश कुमार से बातचीत तय हो चुकी है. बस सही समय का इंतजार है. इसके साथ ही जातीय गणना को लेकर जेडीयू उसके समर्थन से चल रही केंद्र सरकार के खिलाफ भी बयान देने से नहीं हिचक रही है. पर ये स्थिति नहीं है। नीतीश कुमार भी अपनी सरकार के जरिए वोटरों को लुभाने में लगे हुए हैं. आज घोषणा की गई है कि अनुसूचित जाति और जनजाति छात्रावासों में डिजिटल बोर्ड लगाए जाएंगे.
बिहार सरकार सक्रिय है
राजगीर में नवनिर्मित राज्य खेल अकादमी एवं बिहार खेल विश्वविद्यालय का उद्घाटन कार्यक्रम.# मई जा #नीतीशकुमार #बिहार #राजगीर #रील्स pic.twitter.com/53HhwlUjc5
– जनता दल (यूनाइटेड) (@Jduonline) 29 अगस्त 2024
जनसुनवाई कार्यक्रमों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आज पटना में पटन देवी मंदिर के जीर्णोद्धार की बात हो रही है और राजगीर में नवनिर्मित खेल अकादमी और बिहार खेल विश्वविद्यालय का भी उद्घाटन किया गया है. बिहार सरकार आए दिन कुछ न कुछ ऐसा कर रही है. इरादा स्पष्ट रूप से युवा और अस्थायी मतदाताओं को जाति के आधार पर छांटने का है। नीतीश कुमार जहां जातीय समीकरणों के जरिए राजद को घेरने में लगे हैं, वहीं प्रशासनिक तत्परता दिखाकर प्रशांत किशोर की जगह लेने की कोशिशों पर पानी फेरने की कोशिश कर रहे हैं. नीतीश कुमार के इस बदले हुए अंदाज से उनके विरोधी भी हैरान हैं.