कैसे ‘इन्वर्टर मैन ऑफ इंडिया’ कंपनी को लगा करंट, एक गलती से डूब गया 26 साल पुराना बिजनेस, डरावनी कहानी!

मुख्य अंश

कुँवर सचदेव ने 1998 में पहली स्वदेशी इन्वर्टर कंपनी की स्थापना की। सु-केम नाम की इस कंपनी का कारोबार कई देशों में फैला हुआ है। ऋण भुगतान में चूक के बाद कंपनी दिवालिया हो गई।

नई दिल्ली Su-Com कंपनी का नाम तो आपको याद ही होगा. भारत में पहली बार इनवर्टर बनाने वाली इस कंपनी के संस्थापक कुंवर सचदेव को ‘इन्वर्टर मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है। इस कंपनी की शुरुआत उन्होंने करीब 26 साल पहले की थी. उनका कारोबार सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में फैल गया और हर घर की जरूरत बन गया। लेकिन, तभी एक गलती हो गई और उसके बाद कंपनी में गिरावट शुरू हो गई। एक समय ऐसा आया जब इसे दिवालिया घोषित कर दिया गया और अंततः बिकने की कगार पर आ गया। जब संस्थापक सचदेव ने खुद बताया कि कैसे एक सफल व्यवसाय ढह गया, तो भयावह हकीकत सामने आई।

यह 1998 की बात है, जब देश में बिजली संकट चरम पर था। गांवों की तो बात ही छोड़िए, शहरों में भी बिजली कटौती की समस्या बढ़ती जा रही थी। ऐसे में एक ऐसे प्रोडक्ट की जरूरत थी जो लोगों की इस समस्या का समाधान दे सके। दिल्ली के रहने वाले कुंवर सचदेव उस समय केबल टीवी का बिजनेस चला रहे थे, लेकिन पावर बैकअप के बिना यह बिजनेस किसी काम का नहीं था। इसलिए, उन्होंने केबल टीवी व्यवसाय छोड़ दिया और पावर बैकअप इनवर्टर के पहले निर्माता सु-कैम की स्थापना की।

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सफलता का मार्ग ठोस पत्थरों से बना है
हर व्यवसाय की तरह इसमें भी चुनौतियाँ कम नहीं थीं। जब सचदेव का उत्पाद बाजार में आया तो 100 से अधिक लोगों ने खामियां बताकर इसे वापस कर दिया। इन कमियों को दूर करने के बाद जब उन्होंने दोबारा अपना प्रोडक्ट बाजार में उतारा तो तहलका मच गया। इनवर्टर और कंप्यूटर यूबीएस जैसे उत्पादों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया और व्यापार भारत से बाहर मध्य पूर्व, अफ्रीका, नेपाल, बांग्लादेश सहित कई देशों में फैल गया। इस उत्पाद की खासियत यह थी कि इसे शून्य से 55 डिग्री तक के तापमान पर काम करने में सक्षम बनाया गया था।

कठिन दिन फिर आ गये
सु-कॉम का कारोबार लगातार बढ़ रहा था, तभी सचदेव के निजी कारणों से कंपनी करीब 240 करोड़ रुपये का लोन नहीं चुका पाई। कंपनी के पास इस ऋण को आसानी से चुकाने का अवसर था और उसके पास बहुत सारी संपत्ति थी, लेकिन बैंकों ने दिवालियापन के लिए आवेदन किया। आगे जो हुआ वो काफी डरावना था.

सचदेव की हकीकत भयावह है
कुँवर सचदेव ने कहा कि जैसे ही कंपनी दिवालिया घोषित हुई, इसका प्रभार इनसॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रोफेशनल (आईआरपी) को सौंप दिया गया। रातों रात कंपनी के सभी वितरकों और ग्राहकों को संदेश भेजा गया कि यह सेवा अब उपलब्ध नहीं होगी और 3 दशकों की कड़ी मेहनत से बनी कंपनी मेरी आंखों के सामने बंद हो गई। एक ऐसी कंपनी जिसने अमेरिका और चीन की बड़ी कंपनियों को टक्कर देकर अपना बाजार बनाया और भारतीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाई।

फिर शुरू हुआ मुकदमों का खेल
सचदेव का कहना है कि सिर्फ कंपनी बंद करने से वह मेरा पीछा नहीं रोक सके। इसके बाद मेरे खिलाफ एक के बाद एक मामले दर्ज किये गये. हाई कोर्ट और सीबीआई कोर्ट में मामले चलने लगे. बिना किसी गलती के, वर्षों से बनी मेरी गरिमा नष्ट हो गई। मेरे डीलरों, वितरकों और ग्राहकों ने सेवा की कमी के कारण धीरे-धीरे कंपनी छोड़ना शुरू कर दिया। मैं चाहकर भी उनकी मदद नहीं कर सका, क्योंकि कंपनी की सारी संपत्ति बैंकों के कब्जे में थी।

पत्नी ने दिखाई नई राह
सब कुछ बर्बाद होने और छीन जाने के बाद सचदेव सदमे में चले गए लेकिन जब ‘इन्वर्टर मैन ऑफ इंडिया’ की जिंदगी में अंधेरा छा गया तो उनकी पत्नी खुशबू सचदेव ने नई राह दिखाई। उन्होंने एक नया उद्यम Su-Vastic बनाकर ग्राहकों को सेवा देना शुरू किया। इस कंपनी में कुँवर सचदेव सलाहकार के रूप में काम करते थे। एक बार फिर गाड़ी पटरी पर लौट आई और आज कंपनी अपने डीलरों, वितरकों और ग्राहकों को हर तरह की सेवाएं मुहैया करा रही है। कंपनी ने अब तक 60 उत्पादों के लिए पेटेंट के लिए आवेदन किया है, जिनमें से 6 उसके नाम पर दिए गए हैं।

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